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Ukraine-Russia War: तीन साल बाद भी सुलह दूर, अमेरिका की भूमिका पर उठे बड़े सवाल

Ukraine-Russia conflict अब अपने चौथे साल में प्रवेश कर चुका है। 24 फरवरी 2022 को शुरू हुई यह जंग आज भी जारी है, जहां कहीं गोलाबारी हो रही है तो कहीं डिप्लोमैटिक मीटिंग्स बिना किसी बड़े परिणाम के खत्म हो रही हैं। इस लंबी लड़ाई ने न सिर्फ Eastern Europe बल्कि पूरी global politics को हिला कर रख दिया है। सवाल यह है कि आखिर इस ongoing crisis से कौन फायदा उठा रहा है और किसे असली नुकसान हो रहा है?

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Conflict की जड़ें: Crimea से Donbas तक

हालांकि Russia-Ukraine tensions 2022 में full-scale war के रूप में सामने आए, लेकिन इसकी जड़ें बहुत पुरानी हैं। 2010 में Ukraine में Pro-Russia राष्ट्रपति Viktor Yanukovych का चुनाव हुआ। इसी समय Russia ने Crimea में अपना बड़ा military base बनाने की डील पक्की की।

2014 में Yanukovych के सत्ता से हटते ही हालात बदल गए। Crimea पूरी तरह Russia के control में चला गया और Donbas region में pro-Russia movements खड़े हो गए। इसके बाद से ही Ukraine लगातार कोशिश करता रहा है कि वह अपनी जमीन वापस पाए और NATO की सदस्यता हासिल करके अपनी सुरक्षा मजबूत कर सके।

NATO की Politics और Russia की चिंता

Ukraine की सबसे बड़ी इच्छा रही है NATO join करना। लेकिन Russia के लिए यह सबसे बड़ा खतरा है, क्योंकि Ukraine और Russia सीधा border share करते हैं। अगर Ukraine NATO का हिस्सा बन जाता, तो सीधे US और उसके nuclear weapons Russia की सीमा के बगल में आ खड़े होते।

इसी खतरे को रोकने के लिए 24 फरवरी 2022 को Russia ने Ukraine पर military invasion शुरू कर दिया। Moscow का संदेश साफ था—Ukraine चाहे तो लड़ाई करे, लेकिन NATO में उसकी एंट्री कभी नहीं होगी।

India की Neutral Diplomacy

जंग शुरू होते ही Ukraine ने multiple देशों से मदद मांगी। US और यूरोपीय देशों ने Ukraine को हथियार, टैंक और मिसाइलें भेजीं। लेकिन India ने एक neutral और diplomatic stance लिया। New Delhi का कहना रहा कि “युद्ध समाधान नहीं है, बातचीत होनी चाहिए।”

Russia के साथ India के पुराने सैन्य संबंध और तेल आयात के कारण New Delhi openly Kyiv के militaristic agenda में शामिल नहीं हुआ। यही वजह है कि कुछ Western media India पर आरोप लगाते रहे कि वह Russia को indirect support दे रहा है।

US Aid— मदद या कर्ज़?

जंग के शुरुआती सालों में US और NATO partners ने Ukraine को massive financial और military aid दिया। लेकिन aid का यह मतलब नहीं कि यह मुफ्त सहायता थी। Political observers का मानना है कि यह “loan with conditions” था, जिसे अब Ukraine को किसी न किसी रूप में चुकाना ही पड़ेगा।

यही वजह है कि हाल के महीनों में Ukraine और US के बीच तनाव खुलकर सामने आया है। Ex-President Donald Trump ने खुलकर कहा कि Kyiv ने कभी Washington का “proper thank you” तक नहीं कहा।

Trump की कड़ी बातें और Zelensky की बेइज्जती

एक हालिया diplomatic episode में Ukraine के राष्ट्रपति Volodymyr Zelensky को White House में बुलाया गया। उम्मीद थी कि Trump उनकी बात सुनेंगे और Russia पर दबाव डालेंगे। लेकिन स्थिति इसके उलट रही।

Trump ने Zelensky से कहा कि “जंग की हालत खराब होने की जिम्मेदारी Kyiv की ही है।” Public event पर उनका मजाक तक उड़ाया गया और फिर उन्हें अपमानित तरीके से बाहर कर दिया गया। इसके बाद Zelensky को मजबूरी में European leaders के पास मदद के लिए जाना पड़ा।

15 और 18 अगस्त की बैठकों का ड्रामा

15 अगस्त 2025 को Donald Trump और Vladimir Putin की मुलाकात US में हुई। उम्मीद थी कि Trump, Putin से tough सवाल करेंगे। लेकिन हकीकत में बातचीत बिल्कुल अलग निकली। Trump ने Putin से उनके “terms” पूछे।

Moscow ने दो conditions रखीं:

  1. Ukraine NATO join नहीं करेगा।

  2. Russia जिस जमीन पर कब्जा कर चुका है (लगभग 20%)—वह Russia का ही हिस्सा रहे।

Putin की बातों के बाद Trump ने पूरा blame Kyiv पर डाल दिया और कहा कि “war खत्म कराना Zelensky के हाथ में ही है।”

18 अगस्त को हुई दूसरी बैठक में Zelensky अकेले नहीं गए। इस बार उनके साथ Germany, France, UK, Italy और European Council के leaders थे। NATO के Secretary General भी इस मीटिंग का हिस्सा बने।

US की Mineral Deal— असली फायदा किसका?

Ukraine की सबसे बड़ी मजबूरी उसकी डगमगाती economy है। US ने इस हालत का सीधा फायदा उठाया। एक नई deal के तहत US कंपनियों को Ukraine में mining rights मिल गए।

माइनिंग से जो भी revenue निकलेगा, उसका 50% US को जाएगा और बाकी 50% Ukraine को। Analysts का कहना है कि Ukraine अपनी जमीन पर resources खो रहा है और इसका असली फायदा सिर्फ US को मिल रहा है।

Crimea और Donbas: Deadlock जारी

Crimea पहले ही 2014 में Russia को मिल चुका है। Donbas region में भी Moscow-backed groups का कब्जा है। अब Russia openly कह रहा है कि यह इलाका कभी वापस नहीं किया जाएगा। Ukraine इसे surrender करने को तैयार नहीं है।

यही deadlock आने वाले समय में भी war को खत्म नहीं होने देगा।

India और Global Narrative

Interestingly, जब भी blame game होता है, तो spotlight India और China पर डाली जाती है—कि वे Russia से तेल खरीद रहे हैं। लेकिन ground reality कुछ और है।

Russia और US का trade पिछले तीन साल में 20% बढ़ा है। यूरोप अभी भी Moscow से energy purchase कर रहा है। इसके बावजूद blame का बड़ा हिस्सा New Delhi की तरफ मोड़ दिया जाता है।

Conclusion: सबका खेल, नुकसान केवल Ukraine का

तीन साल की इस जंग ने Ukraine को पूरी तरह कमजोर कर दिया है।

  • उसकी economy collapse हो चुकी है

  • Infrastructure लगभग आधा तबाह हो चुका है

  • 20% से ज्यादा जमीन Russia के कब्जे में है

  • Mineral resources अब US के control में जा रहे हैं

  • और NATO membership, जिसके लिए जंग शुरू हुई थी, अब officially deny कर दी गई है

Irony यही है कि बड़े players—Russia, US और Europe—सबने इस war से कुछ न कुछ gain किया है। लेकिन सबसे बड़ा नुकसान सिर्फ और सिर्फ Ukraine का हुआ है।

यह जंग न सिर्फ East Europe बल्कि पूरे global order और power politics की हकीकत को उजागर करती है। जो बातें मंच से “aid” और “support” के नाम पर कही जाती हैं, वे असल में strategic deals और hidden bargains बनकर निकलती हैं।

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